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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक


                     तिलकजी का भारतीय राजनीति में प्रवेश 1880 में हुआ उन्होंने बलवन्त वासुदेव फडके की सहायता से विद्रोह का झण्डा फहराकर ब्रिटिश शासन के प्रति अपना विरोध प्रकट किया तिलक ने जनता को लार्ड रिपन के विचारों से अवगत कराया सन् 1880 में पूना में न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में अपने कार्य की शुरुआत की
          1881 में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश कर मराठा केसरी पत्रिका का संचालन किया इसके माध्यम से जनजागरण देशी रियासतों का पक्ष प्रस्तुत किया ब्रिटिश सरकार की आलोचना के कारण उन्हें चार वर्ष का कारावास भोगना पड़ा जेल से बाहर आकर उन्होंने डैकन एजूकेशन सोसायटी की स्थापना तथा फग्यूर्सन कॉलेज की स्थापना की सन् 1888-89 में शराबबन्दी, नशाबन्दी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाते हुए पत्रों के माध्यम से कार्रवाई की
           सन् 1889 में उन्हें बम्बई कांग्रेस का प्रतिनिधि चुन लिया गया सन् 1891 को सरकार द्वारा विवाह आयु का स्वीकृति विधेयक का बिल उन्होंने प्रस्तुत किया एक बार मिशन रकूल में भाषण देने पर उन्हें सनातनी हिन्दुओं के विरोध का तथा उसके प्रायश्चित के लिए काशी स्नान करना पड़ा जनता की गरीबी को दूर करने के लिए उनकी भूमि सुधार सम्बन्धी नीतियों की काफी आलोचना हुई
           तिलक ने महाराष्ट्र में गणपति महोत्सव एवं शिवाजी जयन्ती का प्रारम्भ कर इस सार्वजनिक आयोजन के माध्यम से एकता का सन्देश लोगों तक पहुंचाया सन् 1895 में काग्रेस की नीतियों की आलोचना कर उन्होंने रानाडे और गोखले को चुनौती दी दुर्भिक्ष के समय अकालपीडित जनता की सहायता सेवा कर लगान सम्बन्धी कानून का विरोध किया
           सरकार ने तिलक की नेतृत्व वाली सभा की मान्यता रह कर दी इसके विरोध स्वरूप तिलक ने मराठा और केसरी में लेख लिखकर ब्रिटिश सरकार की जमकर आलोचना की उन पर राजद्रोह का आरोप लगा 50,000 रुपये के मुचलके पर सजामुक्ति के आदेश को सुनकर बम्बई के एक सेठ द्वारिकादास धरमसी ने यह राशि अदा कर उन्हें छुड़वा लिया
           इसके बाद तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर 18 माह की सजा सुनाई गयी सुनवायी के लिए एक भी भारतीय नहीं रखा गया सन् 1899 में तिलक ने नरमदलवादी नीतियों की आलोचना की तिलक ने 1903 में दि आर्कटिक होम इन दी वेदाज पुस्तक कारावास के समय लिखी


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